Lockdown | Lockdown Story | Story
कहां से कहां कहां कि वक्त नहीं था आज के लिए कहां की हर आज यूं ही कल हो रहा कहां कि फ़िक्र थी हर आने वाले कल की कहां कि हर रोज़ गुज़रा हुआ कल हो रहा कहां कि फुरसत नहीं थी रूकने की कहां कि ठहर गयी ज़िन्दगी सब की कहां कि हम रोज़ कमाते थे खाने के लिए कहां कि हर रोज़ खा रहे हैं मगर बिना कमाये ही कहां कि हम परेशान रहते थे कपड़े और ज्वेलरी के लिए कहां कि दो कपड़ों में गुज़र रही ज़िन्दगी सबकी कहां कि रोज़ मिलते थे यारों से अज़ीज़ों से कहां कि मिलना-मिलाना एक ख्वाब हो गया कहां कि तरसते थे एक छुट्टी को पाने के लिए कहां कि राहे बना रहे छुट्टी की छुट्टी करने के लिए कहां कि तरस रहे थे अपनों के लिए घर के लिए कहां कि वह अपने ही कह रहे काम पे जाने के लिए कहां कि शिकायत थी सबको कि हम देते नहीं वक्त कहां कि आज सबको यही वक्त अखर रहा है कहां कि वह एक झप्पी भुलाती थी वह दुख सारे कहां कि वह झप्पी अब डर जो है कोरोना का कहां कि बिना मिले दोस्तों से दिन नहीं कटता कहां कि दोस्तों से बिना मिले ही जी रहे हैं हम कहां कि बहुत कुछ था कभी पाने के लिए कहां कि आज हर दिन ही कुछ खो रहे अपना कहां कि तरसते थे हम घर में र